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कलम से उतरे शब्दों का कमाल… ( Editorial )

अजीबोगरीब है इनकी दुनिया, बेहद खूबसूरत और निराली जिसमें हर कोई डूब जाने की चाहत रखता है.. क्योंकि जहां एक ओर इनका स्वरूप नौ-रसों से लबालब भरा है तो दूसरी ओर  इनका विचित्र स्वभाव ही तो है, जो अनेकों अनदेखी और अनकही कहानियों को कागजों पर लाकर जन्म दिया करते हैं। ‘शब्दों’ के बिछाये चक्रव्यूह में घुसने का दुस्साहस सिर्फ कलम ही तो कर सकती है। 

यही नहीं जीवन-चक्र की बागडोर भी इन्हीं हाथों में होती है। यह सिलसिला जन्म प्रमाणपत्र से शुरू होते हुए अंतिम पड़ाव को प्रमाणित करने तक चलता आ रहा है। कहने का तात्पर्य यह है, कि जीवन के हर पहलू में शब्दों का अहम स्थान है। नवजात शिशु के मुंह से निकला पहला शब्द (मां) का भाव अनेक शब्दों के बीजों को जनम देता है ,जो वात्सल्य की परिपूर्णता को दर्शाता है। मातृत्व अवस्था के इन अनमोल स्नेही क्षणों के पदचिह्न ही अपनी छाप छोड़ बहुत कुछ कह जाते है। 

आज फिर, जब मैंने अपने परिजनों और कुछ नये, कुछ पुराने मित्रों से रूबरू होते हुए संवाद के लिए कलम उठाई। यूं लगा कि बहुत कुछ लिखने की चाह की इस कोशिश में मानो शब्दों के कदम खुद ही चल पड़े हों। दो पल सोचने के बाद इस का अहसास भी हुआ कि कलम से लिखे, कागज पर उतरे.. हर शब्द यह ही तो प्रमाणित करते हैं कि, वह कलम की इस ताकत और उसकी पहुंच से न केवल परिचित ही है, बल्कि शब्दों को इसका अनुभव ,अभ्यास भलीभांति प्राप्त है। इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि अगर कलम नहीं होती तो शब्दों का दायरा सीमित रह जाता। कलम के हाथ लगते ही ,न जाने कहां से शब्दों के जरिये अनकहे विचार व बातें सहजता से पन्नों पर उतर पाती हैं। यह शब्दों का ही तो खेल है सारा कि अचेतन मन को भी जगा देता है और दिलों में छुपे राज़ खुल कर जुबान पर आ जाते है। शब्दों का भंडार ही तो वह प्रमाणित जरिया है,जो कलम के माध्यम से भावों को माला में पिरो कर अहसासों को संजोने की क्षमता रखता है। बल्कि देशों के बीच व्यापार में आदान-प्रदान, और शांति-संधि का माध्यम बन, आपसी सहयोग को मजबूत करने की श्रृंखला की कड़ी जोड़ने में अहम भूमिका भी निभाते हैं। इतिहास को पन्नों को समेटते इन शब्दों की जरूरत को नकारा नहीं जा सकता। अगर शब्द न होते तो कवि-कवयित्रियों की उड़ान सीमित ही रह जाती और उनसे भावविभोर हो प्राकृतिक ब्रह्मांड का वर्णन नहीं हो पाता। 

कलम से लिखा हर शब्द का प्रयोग उसकी महिमा को दर्शाता है। शब्दों की पहुँच और उसके वजूद को हलके से लेने की नादानी नहीं करनी चाहिये। अरे.. ! यही तो वह जादुई छड़ी है.. जिसमें प्रशंसा का श्रृंगार भी है, तो व्यंग का प्रहार भी, और तो और दिग्गज विचारकों का भंडार भी। शब्दों को ढालते ही भावों की अभिव्यक्ति रचनाओं का रूप धारण कर लेती है। अगर एक ओर नृत्य में घुंघरू की झंकार है, तो शब्दों के वार से शत्रुओं को ललकार दे कर सल्तनतों को पराजित करने के उदाहरण भी तो मौजूद है। 

कलम का अस्तित्व और कागज की पहचान हमेशा से ही शब्दों के मोहताज थी और रहेगी। ऐसा ही तो है शब्दों का खेल.. हर एक शब्द का रूप परिपूर्ण होता है और उसके अर्थ में ही तो उसकी खूबसूरती छुपी रहती है.. जैसे ‘दयालु’ शब्द में अगर मनुष्य के प्रति अपनेपन का एहसास है जो रचनात्मक शक्ति को भी परिभाषित करता है, तो ‘आशीर्वाद’ शब्द में अनेकों दुआएँ व स्नेह छुपी हैं। दिलचस्प है कि अनेक शब्दों में परिवर्तन को प्रभावित करने में सक्षमता होती है। उनकी अभिव्यक्ति ही एक पूर्ण जीवंत अनुभव को प्रतिनिधित्व करने वाली शक्ति है। विवेकानंद ने एक सत्संग में शब्दों की महिमा का जिक्र करते कहा कि अगर हमें यह ईश्वर के सानिध्य में ले जा सकते हैं, तो हमें भावना से भर उत्तेजित भी कर सकते है। इसीलिए सोच समझ कर ही बोलें, क्योंकि शब्द आप को ही नहीं, अन्य को भी तो ठेस पहुंचा सकते है।

 

बिछे है जाल शब्दों में, छुपे है राज़ भी, है संभाले सत्य या झूठ कमान,
निःशब्द बोले, पढ़े तो बने खामोशी, बातें पाटे फासले, अपशब्द भी यही,
सवाल है तो जवाब भी यही, इन्हीं से सीखा हमने‘ अभिव्यक्ति स्वतंत्रता’,
जीवन काल लेखा-जोखा इन हाथों, कागज उतरे बने कानून व संविधान,
शब्द ही प्रवचन मंत्र, है ईश्वरीय वरदान, हो दुआ व अज़ान भी इन्हीं से।

दोगले अर्थ भी इन्हीं से, ‘हां’ या ‘नहीं’ शब्द तय करें, दुनियादारी स्वरुप,
अगर इंसान पहचान इन्हीं से, तो रिश्तों का सार भी, है छिपा इसी में,
‘शब्दों का खेल’ है नहीं सरल, इन्हें तोड़ना-मोड़ना, तराश कर पिरोना,
हैं यह महारथी, पृष्ठों पर कलम स्याही, साथ निभाना, है निपुणता बेमिसाल,
आज फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम फॉलोअर न होते, न ही बनता वॉटस्प ग्रुप।

‘शब्दों’ की हेराफेरी ही तो है काव्य पाठ, है भावों की उत्कृष्ट ‘अनुभूति अनुभव’,
न होती कलम-शब्द ‘जुगलबंदी’ तो न बजते साज़, और न ही होते सुर व ताल।

गीतांजलि सक्सेना
2022