दुनिया तुमसे.....नारीत्व
यह कैसे–कहूं, कि क्यों? ऐसी हलचल है मची तन मन में ?
सुन सको…तो बूझो समझो, अन्तर्मन की उस आवाज़ को,
हल पल ,याद है दिलाती, क्यों तू दूसरों में ही रही बहती,
बस अब नहीं… , उलझना इस दुनियादारी के जंजाल में,
जब जागो तब सवेरा, अभी बहुत कुछ है करना बाकी,
बस अब खुद को… आज़मा कर, अपने हित में भी है लड़ना।
कुछ नया करने में संकोच कैसा ? पीछे मुड़ कर नहीं है देखना,
छोड़ आस, उम्मीद का दामन, निकल इस आज़माइश के कटघरे से,
कुछ भी तो है नहीं असम्भव, न भूल तुझमें ही हैं वो सब गुण,
कर अपने हौसले बुलंद, हर जंग है लड़नी, ….करनी है जीत हासिल ,
हार तो कभी होती नहीं, वह भी छोड़ जाती है एक…‘सीख’ अलग सी ।
अब बस खुद को ही है समझना, टटोलना, अपनी पहचान है बनानी,
उठकर, अपने अस्तित्व को संभालना, निखारना है अभी बाकी,
किसी एक दिन ही सिर्फ़ नहीं, हर पल ‘नारी उत्सव’ है मनाना,
तू ही तो शक्ति, है ईश्वरीय वरदान!